१०-०५-२०१५, रविवार
10-05-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:30-11-79 मधुबन
स्वमान में स्थित आत्मा के लक्षण बापदादा हरेक बच्चे को पदमापदम भाग्यशाली आत्मा देखते हैं। हरेक की श्रेष्ठ प्रालब्ध सदा बाप के सामने है और यही बेहद के बाप को बच्चों पर नाज है। आपस में रीस नहीं लेकिन रेस करो। माया कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप अंगद के मुआफिक जरा भी नहीं हिलो, नाखून से भी हिला न सके। अगर जरा भी कमजोरी के संस्कार होंगे तो माया अपना बना लेगी इसलिए मरजीवा बनो, पुराने संस्कारों से मरजीवा। आधाकल्प आप दर्शन करने जाते रहे, अभी बाप परमधाम से आते हैं आपके दर्शन के लिए। देखने को ही दर्शन कहते हैं। बाप बच्चों को देखने के लिए आते हैं। वह दर्शन नहीं यह दर्शन अर्थात् मिलना। ऐसा दर्शन जिससे प्रसन्न हो जाएं। जैसे एक घण्टा सफल करते हो तो लाख गुणा जमा होता, ऐसे एक घण्टा वेस्ट जाता है तो लाख गुणा घाटा होता है इसलिए अब व्यर्थ का खाता बन्द करो। हर सेकेण्ड अटेन्शन प्रवृत्ति में रहते सदा माया से निवृत। न्यारा और प्यारा। न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो सदा मायाप्रूफ अर्थात् न्यारे रहेंगे। न्यारा सदा प्रभु का प्यारा होता है। न्यारापन अर्थात् ट्रस्टीपन। ट्रस्टी की किसी में अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि मेरापन नहीं होता। मेरेपन से माया का जन्म होता है। जब मेरापन नहीं तो माया का जन्म ही नहीं। जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। तो मायाजीत बनने का सहज तरीका - सदा ट्रस्टी समझो। जितना सागर के तले में जाते हैं उतना क्या मिलता है? रत्न। ऐसे ही जितना ज्ञान की गहराई में जायेंगे उतना अनुभव के रत्न मिलेंगे और ऐसे अनुभवी मूर्त हो जायेंगे जो आपके अनुभव को देख और भी अनुभवी बन जायेंगे। ऐसे अनुभवी बने हो? एक है ज्ञान सुनना और सुनाना, दूसरा है अनुभवी मूर्त बनना। सुनना व सुनाना - पहली स्टेज, अनुभवी मूर्त बनना यह है लास्ट स्टेज। जितना अनुभवी होंगे उतना अविनाशी और निर्विघ्न होंगे। शुद्ध संकल्प का स्टॉक हो तो व्यर्थ खत्म हो जायेगा। जो रोज ज्ञान सुनते हो, उसमें से कोई-न-कोई बात पर मनन करते रहो। व्यर्थ संकल्प चलना अर्थात् मनन शक्ति की कमी है। मनन करना सीखो। एक ही शब्द लेकर के उसकी गुह्यता में जाओ। अपने आपको रोज कोई-न-कोई टॉपिक सोचने को दो, फिर व्यर्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे। जब भी कोई व्यर्थ संकल्प आये तो बुद्धि से मधुबन पहुँच जाना। आप मैसेन्जर हो। जहाँ भी जाओ, जो भी सम्पर्क में आये उन्हें बाप का परिचय देते रहो। बीज डालते जाओ। ऐसे भी नहीं सोचना इतनों को कहा लेकिन आये 2-4 ही। किसी बीज का फल जल्दी निकलता है, किसी बीज का फल सीजन में निकलता है। किसी बीज का फल जल्दी निकलता है, किसी बीज का फल सीजन में निकलता है। अविनाशी बीज है, फल अवश्य देगा, इसलिए बीज डालते जाओ अर्थात् मैसेज देते जाओ। सदा याद और सेवा का बैलेन्स रखते हुए ब्लिसफुल बनो। वरदान: लोक पसन्द सभा की टिकेट बुक करने वाले राज्य सिंहासन अधिकारी भव !
कोई भी संकल्प या विचार करते हो तो पहले चेक करो कि यह विचार व संकल्प बाप पसन्द है? जो बाप पसन्द है वह लोक पसन्द स्वत: बन जाते हैं। यदि किसी भी संकल्प में स्वार्थ है तो मन पसन्द कहेंगे और विश्व कल्याणार्थ है तो लोकपसन्द व प्रभू पसन्द कहेंगे। लोक पसन्द सभा के मेम्बर बनना अर्थात् ला एण्ड आर्डर का राज्य अधिकार व राज्य सिंहासन प्राप्त कर लेना।
स्लोगन: परमात्म साथ का अनुभव करो तो सब कुछ सहज अनुभव करते हुए सेफ रहेंगे।
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10-05-2015, Sunday
When you have any thought or idea, first of all, check whether that idea or thought is one that the Father would like. Whatever the Father likes, people will automatically like. If anyone’s thoughts have any selfishness in them, that would be said to be something liked by the self, whereas if it is for the benefit of the world, people will like it and God will like it. To become a member of the “Lok Pasand Sabha” means to attain a right to the kingdom, that is, to the throne of law and order. Slogan: Experience God’s company and you will remain safe and experience everything to be easy.
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10-05-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:30-11-79 मधुबन
स्वमान में स्थित आत्मा के लक्षण बापदादा हरेक बच्चे को पदमापदम भाग्यशाली आत्मा देखते हैं। हरेक की श्रेष्ठ प्रालब्ध सदा बाप के सामने है और यही बेहद के बाप को बच्चों पर नाज है। आपस में रीस नहीं लेकिन रेस करो। माया कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप अंगद के मुआफिक जरा भी नहीं हिलो, नाखून से भी हिला न सके। अगर जरा भी कमजोरी के संस्कार होंगे तो माया अपना बना लेगी इसलिए मरजीवा बनो, पुराने संस्कारों से मरजीवा। आधाकल्प आप दर्शन करने जाते रहे, अभी बाप परमधाम से आते हैं आपके दर्शन के लिए। देखने को ही दर्शन कहते हैं। बाप बच्चों को देखने के लिए आते हैं। वह दर्शन नहीं यह दर्शन अर्थात् मिलना। ऐसा दर्शन जिससे प्रसन्न हो जाएं। जैसे एक घण्टा सफल करते हो तो लाख गुणा जमा होता, ऐसे एक घण्टा वेस्ट जाता है तो लाख गुणा घाटा होता है इसलिए अब व्यर्थ का खाता बन्द करो। हर सेकेण्ड अटेन्शन प्रवृत्ति में रहते सदा माया से निवृत। न्यारा और प्यारा। न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो सदा मायाप्रूफ अर्थात् न्यारे रहेंगे। न्यारा सदा प्रभु का प्यारा होता है। न्यारापन अर्थात् ट्रस्टीपन। ट्रस्टी की किसी में अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि मेरापन नहीं होता। मेरेपन से माया का जन्म होता है। जब मेरापन नहीं तो माया का जन्म ही नहीं। जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। तो मायाजीत बनने का सहज तरीका - सदा ट्रस्टी समझो। जितना सागर के तले में जाते हैं उतना क्या मिलता है? रत्न। ऐसे ही जितना ज्ञान की गहराई में जायेंगे उतना अनुभव के रत्न मिलेंगे और ऐसे अनुभवी मूर्त हो जायेंगे जो आपके अनुभव को देख और भी अनुभवी बन जायेंगे। ऐसे अनुभवी बने हो? एक है ज्ञान सुनना और सुनाना, दूसरा है अनुभवी मूर्त बनना। सुनना व सुनाना - पहली स्टेज, अनुभवी मूर्त बनना यह है लास्ट स्टेज। जितना अनुभवी होंगे उतना अविनाशी और निर्विघ्न होंगे। शुद्ध संकल्प का स्टॉक हो तो व्यर्थ खत्म हो जायेगा। जो रोज ज्ञान सुनते हो, उसमें से कोई-न-कोई बात पर मनन करते रहो। व्यर्थ संकल्प चलना अर्थात् मनन शक्ति की कमी है। मनन करना सीखो। एक ही शब्द लेकर के उसकी गुह्यता में जाओ। अपने आपको रोज कोई-न-कोई टॉपिक सोचने को दो, फिर व्यर्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे। जब भी कोई व्यर्थ संकल्प आये तो बुद्धि से मधुबन पहुँच जाना। आप मैसेन्जर हो। जहाँ भी जाओ, जो भी सम्पर्क में आये उन्हें बाप का परिचय देते रहो। बीज डालते जाओ। ऐसे भी नहीं सोचना इतनों को कहा लेकिन आये 2-4 ही। किसी बीज का फल जल्दी निकलता है, किसी बीज का फल सीजन में निकलता है। किसी बीज का फल जल्दी निकलता है, किसी बीज का फल सीजन में निकलता है। अविनाशी बीज है, फल अवश्य देगा, इसलिए बीज डालते जाओ अर्थात् मैसेज देते जाओ। सदा याद और सेवा का बैलेन्स रखते हुए ब्लिसफुल बनो। वरदान: लोक पसन्द सभा की टिकेट बुक करने वाले राज्य सिंहासन अधिकारी भव !
कोई भी संकल्प या विचार करते हो तो पहले चेक करो कि यह विचार व संकल्प बाप पसन्द है? जो बाप पसन्द है वह लोक पसन्द स्वत: बन जाते हैं। यदि किसी भी संकल्प में स्वार्थ है तो मन पसन्द कहेंगे और विश्व कल्याणार्थ है तो लोकपसन्द व प्रभू पसन्द कहेंगे। लोक पसन्द सभा के मेम्बर बनना अर्थात् ला एण्ड आर्डर का राज्य अधिकार व राज्य सिंहासन प्राप्त कर लेना।
स्लोगन: परमात्म साथ का अनुभव करो तो सब कुछ सहज अनुभव करते हुए सेफ रहेंगे।
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10-05-2015, Sunday
“The qualifications of a soul who is stable in his self-respect.”
Blessing: May you have a right to the throne of the kingdom and book the ticket to be part of the “Lok Pasand” (People’s Assembly). When you have any thought or idea, first of all, check whether that idea or thought is one that the Father would like. Whatever the Father likes, people will automatically like. If anyone’s thoughts have any selfishness in them, that would be said to be something liked by the self, whereas if it is for the benefit of the world, people will like it and God will like it. To become a member of the “Lok Pasand Sabha” means to attain a right to the kingdom, that is, to the throne of law and order. Slogan: Experience God’s company and you will remain safe and experience everything to be easy.
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