०६-०६-२०१४, शुक्रवार
“मीठे बच्चे – यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो, तुम्हें आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने हैं, यह देवता बनने की पढ़ाई है”प्रश्र: तुम बच्चे कौन-सी पढ़ाई बाप से ही पढ़ते हो, दूसरा कोई पढ़ा नही सकता ?
उत्तर: मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई, अपवित्र से पवित्र बनकर नई दुनिया में जाने की पढ़ाई एक बाप के सिवाए और कोई भी पढ़ा नही सकता । बाप ही सहज ज्ञान और राजयोग की पढ़ाई द्वारा पवित्र प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते है ।धारणा के लिए मुख्य मुरली सार:१.श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है । जैसे देवतायें निर्विकारी हैं, ऐसे गृहस्थ में रहते निर्विकारी बनना है । पवित्र प्रवृत्ति बनानी है ।
२.ड्रामा की प्वाइंट को उल्टे रूप से यूज नहीं करना है । ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है । पढाई पर पूरा ध्यान देना है । पुरूषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है ।
वरदान: अपने सम्पर्क द्वारा अनेक आत्माओं की चिंताओं को मिटाने वाले सर्व के प्रिय भव !वर्तमान समय व्यक्तियों में स्वार्थ भाव होने के कारण और वैभवों द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति होने के कारण आत्मायें कोई न कोई चिंता में परेशान है । आप शुभचिंतक आत्माओं के थोड़े समय का सम्पर्क भी उन आत्माओं की चिंताओं को मिटाने का आधार बन जाता है । आज विश्व को आप जैसी शुभचिंतक आत्माओं की आवश्यकता है इसलिए आप विश्व को अतिप्रिय हो ।
उत्तर: मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई, अपवित्र से पवित्र बनकर नई दुनिया में जाने की पढ़ाई एक बाप के सिवाए और कोई भी पढ़ा नही सकता । बाप ही सहज ज्ञान और राजयोग की पढ़ाई द्वारा पवित्र प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते है ।धारणा के लिए मुख्य मुरली सार:१.श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है । जैसे देवतायें निर्विकारी हैं, ऐसे गृहस्थ में रहते निर्विकारी बनना है । पवित्र प्रवृत्ति बनानी है ।
२.ड्रामा की प्वाइंट को उल्टे रूप से यूज नहीं करना है । ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है । पढाई पर पूरा ध्यान देना है । पुरूषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है ।
वरदान: अपने सम्पर्क द्वारा अनेक आत्माओं की चिंताओं को मिटाने वाले सर्व के प्रिय भव !वर्तमान समय व्यक्तियों में स्वार्थ भाव होने के कारण और वैभवों द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति होने के कारण आत्मायें कोई न कोई चिंता में परेशान है । आप शुभचिंतक आत्माओं के थोड़े समय का सम्पर्क भी उन आत्माओं की चिंताओं को मिटाने का आधार बन जाता है । आज विश्व को आप जैसी शुभचिंतक आत्माओं की आवश्यकता है इसलिए आप विश्व को अतिप्रिय हो ।
स्लोगन: आप हीरे तुल्य आत्माओं के बोल भी रत्न समान मूल्यवान हो |
ओम् शान्ति ।
06-06-2014, Friday
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