२५-०६-२०१४, बुधवार
स्लोगन: संकल्प रूपी पांव मजबूत हों तो काले बादलों जैसी बातें भी परिवर्तन हो जायेंगी।
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25-06-2014, Wednesday
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“मीठे बच्चे – बाप उस रथ में आते हैं, जिसने पहले-पहले भक्ति शुरू की, जो नम्बरवन पूज्य था फिर पुजारी बना है, यह राज़ सबको स्पष्ट करके सुनाओ”प्रश्न: बाप अपने वारिस बच्चों को कौन-सा वर्सा देने आये हैं ?
उत्तर:- बाप सुख, शान्ति, प्रेम का सागर है। यही सारा खजाना वह तुम्हें विल करते हैं। ऐसा विल कर देते जो 21 जन्म तक तुम खाते रहो, खुट नहीं सकता। तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बना देते हैं। तुम बाप का सारा खजाना योग¬बल से लेते हो। योग के बिना खजाना नहीं मिल सकता है।
धारणा के लिए मुख्य सार:१.ऊंच पद पाने के लिए पूरा फालो फादर करना है। सब कुछ बाप के हवाले कर ट्रस्टी हो सम्भालना है, पूरा वारी जाना है। खान-पान, रहन-सहन बीच का साधारण रखना है। न बहुत ऊंच, न बहुत नींच।
२.बाप ने जो सुख-शान्ति, ज्ञान का खजाना विल किया है, उसे दूसरों को भी देना है, कल्याणकारी बनना है।
वरदान: देह-भान को देही-अभिमानी स्थिति में परिवर्तन करने वाले बेहद के वैरागी भवचलते-चलते यदि वैराग्य खण्डित होता है तो उसका मुख्य कारण है – देह-भान। जब तक देह-भान का वैराग्य नहीं है तब तक कोई भी बात का वैराग्य सदाकाल नहीं रह सकता। सम्बन्ध से वैराग्य – यह कोई बड़ी बात नहीं है, वह तो दुनिया में भी कईयों को वैराग्य आ जाता है लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन्हें जानकर, देह-भान को देही-अभिमानी स्थिति में परिवर्तन कर देना – यह विधि है बेहद के वैरागी बनने की।
उत्तर:- बाप सुख, शान्ति, प्रेम का सागर है। यही सारा खजाना वह तुम्हें विल करते हैं। ऐसा विल कर देते जो 21 जन्म तक तुम खाते रहो, खुट नहीं सकता। तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बना देते हैं। तुम बाप का सारा खजाना योग¬बल से लेते हो। योग के बिना खजाना नहीं मिल सकता है।
धारणा के लिए मुख्य सार:१.ऊंच पद पाने के लिए पूरा फालो फादर करना है। सब कुछ बाप के हवाले कर ट्रस्टी हो सम्भालना है, पूरा वारी जाना है। खान-पान, रहन-सहन बीच का साधारण रखना है। न बहुत ऊंच, न बहुत नींच।
२.बाप ने जो सुख-शान्ति, ज्ञान का खजाना विल किया है, उसे दूसरों को भी देना है, कल्याणकारी बनना है।
वरदान: देह-भान को देही-अभिमानी स्थिति में परिवर्तन करने वाले बेहद के वैरागी भवचलते-चलते यदि वैराग्य खण्डित होता है तो उसका मुख्य कारण है – देह-भान। जब तक देह-भान का वैराग्य नहीं है तब तक कोई भी बात का वैराग्य सदाकाल नहीं रह सकता। सम्बन्ध से वैराग्य – यह कोई बड़ी बात नहीं है, वह तो दुनिया में भी कईयों को वैराग्य आ जाता है लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन्हें जानकर, देह-भान को देही-अभिमानी स्थिति में परिवर्तन कर देना – यह विधि है बेहद के वैरागी बनने की।
स्लोगन: संकल्प रूपी पांव मजबूत हों तो काले बादलों जैसी बातें भी परिवर्तन हो जायेंगी।
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