Monday, March 14, 2016

14-03-2016's Murli

१४-०३-२०१५, सोमवार 
14-03-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे – तुम्हारा धन्धा है मनुष्यों को सुजाग करना, रास्ता बताना, जितना तुम
देही-अभिमानी बनकर बाप का परिचय सुनायेंगे उतना कल्याण होगा”  
प्रश्न: गरीब बच्चे अपनी किस विशेषता के आधार पर साहूकारों से आगे जाते हैं?
उत्तर: गरीबों में दान पुण्य की बहुत श्रद्धा रहती है। गरीब भक्ति भी लगन से
करते हैं। साक्षात्कार भी गरीबों को होता है। साहूकारों को अपने धन का नशा
रहता। पाप जास्ती होते इसलिए गरीब बच्चे उनसे आगे चले जाते हैं।
ओम् शान्ति।
तुम मात-पिता हम बालक तेरे... यह तो जरूर परमपिता परमात्मा की महिमा गाई हुई है।
यह तो क्लीयर महिमा है क्योंकि वह रचयिता है। लौकिक माँ-बाप भी बच्चे के
रचयिता हैं। पारलौकिक बाप को भी रचता कहा जाता है। बंधू, सहायक..... बहुत
महिमा गाते हैं। लौकिक बाप की इतनी महिमा नहीं है। परमपिता परमात्मा की
महिमा ही अलग है। बच्चे भी महिमा करते हैं ज्ञान का सागर है, नॉलेजफुल है।
उनमें सारा ज्ञान है। नॉलेज कोई शरीर निर्वाह की पढ़ाई का नहीं है। उनको ज्ञान
का सागर नॉलेजफुल कहा जाता है। तो जरूर उनके पास ज्ञान है परन्तु कौन सा
ज्ञान? यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, उसका ज्ञान है। तो वही ज्ञान सागर पतित-पावन है।
कृष्ण को कभी पतित-पावन वा ज्ञान का सागर नहीं कहते। उनकी महिमा बिल्कुल
न्यारी है। दोनों हैं भारत के निवासी। शिवबाबा की भी भारत में महिमा है। शिव जयन्ती
भी यहाँ मनाते हैं। कृष्ण की जयन्ती भी मनाते हैं। गीता की भी जयन्ती मनाते हैं।
3 जयन्ती मुख्य हैं। अब प्रश्न उठता है कि पहले जयन्ती किसकी हुई होगी? शिव की
या कृष्ण की? मनुष्य तो बिल्कुल ही बाप को भूले हुए हैं। कृष्ण की जयन्ती बड़े
धूमधाम से, प्यार से मनाते हैं। शिव जयन्ती का इतना किसको पता नहीं है, न
गायन है। शिव ने क्या आकर किया? उनकी बायोग्राफी का किसको पता नहीं है।
कृष्ण की तो बहुत बातें लिख दी हैं। गोपियों को भगाया, यह किया। कृष्ण के चरित्रों
की खास एक मैगजीन भी निकलती है। शिव के चरित्र आदि कुछ हैं नहीं। कृष्ण की
जयन्ती कब हुई फिर गीता की जयन्ती कब हुई? कृष्ण जब बड़ा हो तब तो ज्ञान
सुनावे। कृष्ण के बचपन को तो दिखाते हैं, टोकरी में डालकर पार ले गये। बड़ेपन
का दिखाते हैं, रथ पर खड़ा है। चक्र चलाते हैं। 16-17 वर्ष का होगा। बाकी चित्र
छोटेपन के दिखाये हैं। अब गीता कब सुनाई। उसी समय तो नहीं सुनाई होगी।
जब लिखते हैं फलानी को भगाया, यह किया। उस समय तो ज्ञान शोभे भी नहीं।
ज्ञान तो जब बुजुर्ग हो तब सुनाये। गीता भी कुछ समय बाद सुनाई होगी।
अब शिव ने क्या किया, कुछ पता नहीं। अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। बाप कहते
हैं मेरी बायोग्राफी का कोई को पता नहीं है। मैंने क्या किया? मुझे ही पतित-पावन
कहते हैं। मैं आता हूँ तो साथ में गीता है। मैं साधारण बूढ़े अनुभवी तन में आता हूँ।
शिव जयन्ती तुम भारत में ही मनाते हो। कृष्ण जयन्ती, गीता जयन्ती यह
3 मुख्य हैं। राम की जयन्ती तो बाद में होती है। इस समय जो कुछ होता है वह
बाद में मनाया जाता है। सतयुग त्रेता में जयन्ती आदि होती नहीं। सूर्यवंशी से
चन्द्रवंशी वर्सा लेते हैं और किसकी महिमा है नहीं। सिर्फ राजाओं का कारोनेशन मनाते
होंगे। बर्थ डे तो आजकल सब मनाते हैं। वह तो कॉमन बात हुई। कृष्ण ने जन्म लिया
बड़ा होकर राजधानी चलाई, उसमें महिमा की तो बात ही नहीं। सतयुग त्रेता में सुख का
राज्य चला आया है। वह राज्य कब, कैसे स्थापन हुआ! यह तुम बच्चों की बुद्धि में है।
बाप कहते हैं बच्चों मैं कल्पकल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। कलियुग का अन्त है
पतित दुनिया। सतयुग आदि पावन दुनिया। मैं बाप भी हूँ। तुम बच्चों को वर्सा भी दूँगा।
कल्प पहले भी तुमको वर्सा दिया था इसलिए तुम मनाते आये हो। परन्तु नाम भूल जाने
से कृष्ण का नाम डाल दिया है। बड़े ते बड़ा शिव है ना। पहले तो जब उनकी जयन्ती हो
तब फिर साकार मनुष्य की हो। आत्मायें तो सब वास्तव में ऊपर से उतरती हैं।
मेरा भी अवतरण है। कृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया, पालना ली। सबको पुनर्जन्म
में आना ही है। शिवबाबा पुनर्जन्म नहीं लेते हैं। आते तो हैं ना। तो यह सब बाप बैठ
समझाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की त्रिमूर्ति दिखाते हैं ना। ब्रह्मा द्वारा स्थापना,
क्योंकि शिव को तो अपना शरीर है नहीं। खुद बैठ बताते हैं मैं इनके बूढ़े तन में आता हूँ।
यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। इनके बहुत जन्मों के अन्त का यह जन्म है।
तो पहले-पहले समझाना पड़े। शिव जयन्ती बड़ी या श्रीकृष्ण जयन्ती बड़ी?
अगर कृष्ण ने गीता सुनाई तो गीता जयन्ती तो श्रीकृष्ण के बहुत वर्षों के बाद हो सके,
जबकि कृष्ण बड़ा हो। यह सब समझने की बातें हैं ना। लेकिन वास्तव में शिव जयन्ती
के बाद हुई फट से गीता जयन्ती। यह भी प्वाइंट्स बुद्धि में रखनी हैं। प्वाइंट तो ढेर हैं।
बिगर नोट किये याद रह न सकें। बाबा इतना नजदीक है, उनका रथ है, वह भी
कहते हैं सब प्वाइंट्स समय पर याद आ जायें, मुश्किल है। बाबा ने समझाया है सबको
दो बाप का राज समझाओ। शिवबाबा की जयन्ती मनाते हैं, जरूर आता होगा।
जैसे क्राइस्ट, बुद्ध आदि आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। वह भी आत्मा आकर
प्रवेश कर धर्म स्थापन करती है। वह है हेविनली गॉड फादर, सृष्टि के रचयिता।
तो जरूर नई सृष्टि रचेंगे। पुरानी थोड़ेही रचेंगे। नई सृष्टि को स्वर्ग कहा जाता है,
अभी है नर्क। बाबा कहते हैं मैं कल्पकल्प के संगम पर आकर तुम बच्चों को राजयोग
का ज्ञान देता हूँ। यह है भारत का प्राचीन योग। किसने सिखाया? शिवबाबा का नाम
तो गुम कर दिया है। एक तो कहते गीता का भगवान श्रीकृष्ण और विष्णु आदि के
नाम दे देते हैं। शिवबाबा ने राजयोग सिखाया था। किसको पता नहीं है। शिव जयन्ती
निराकार की जयन्ती ही दिखाते हैं। वह कैसे आया, क्या आकर किया? वह तो सर्व का
सद्गति दाता, लिबरेटर, गाइड है। अभी सर्व आत्माओं को गाइड चाहिए परमात्मा।
वह भी आत्मा है। जैसे मनुष्यों का गाइड भी मनुष्य होता है, वैसे आत्माओं का
गाइड भी आत्मा चाहिए। वह तो सुप्रीम आत्मा ही कहेंगे। मनुष्य तो सब पुनर्जन्म ले
पतित बनते हैं। फिर पावन बनाए वापिस कौन ले जाये? बाप कहते हैं मैं ही आकर
पावन होने की युक्ति बताता हूँ। तुम मुझे याद करो। कृष्ण तो कह न सके कि देह
का संबंध छोड़ो। वह तो 84 जन्म लेते हैं। सब सम्बन्धों में आते हैं। बाप को
अपना शरीर नहीं है। तुमको यह रूहानी यात्रा बाप सिखलाते हैं। यह है रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों प्रति रूहानी नॉलेज। कृष्ण कोई का रूहानी बाप थोड़ेही हैं।
सबका रूहानी बाप मैं हूँ। मैं ही गाइड बन सकता हूँ। लिबरेटर, गाइड, ब्लिसफुल,
पीसफुल, एवरप्योर सब मेरे लिए कहते हैं। अभी तुम आत्माओं को नॉलेज दे रहे हैं।
बाप कहते हैं मैं इस शरीर द्वारा तुमको दे रहा हूँ। तुम भी शरीर द्वारा नॉलेज ले रहे हो।
वह है गॉड फादर। उनका रूप भी बताया है। जैसे आत्मा बिन्दी है, वैसे परमात्मा भी
बिन्दी है। यह कुदरत है ना। वास्तव में बड़ी कुदरत तो यह है। इतने छोटे स्टार में
84 जन्मों का पार्ट है। यह है कुदरत। बाप का भी ड्रामा में पार्ट है। भक्ति मार्ग
में भी तुम्हारी सर्विस करते हैं। तुम्हारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी है,
इसको कहा जाता है कुदरत, इसका वर्णन कैसे करें। इतनी छोटी सी आत्मा है।
यह बातें सुनकर वन्डर खाते हैं। आत्मा है भी स्टार मुआिफक। 84 जन्म एक्यूरेट
भोगती है। सुख भी वह एक्यूरेट भोगेगी। यह है कुदरत। बाप भी है आत्मा,
परम आत्मा। उनमें सारी नॉलेज भरी हुई है, जो बच्चों को समझाते हैं।
यह हैं नई बातें, नये मनुष्य सुनकर कहेंगे इनका ज्ञान तो कोई शास्त्र आदि
में भी नहीं है। फिर भी जिन्होंने कल्प पहले सुना है, वर्सा लिया है वही वृद्धि को
पाते रहते हैं। टाइम लगता है। प्रजा ढेर बनती है। वह तो सहज है। राजा बनने
में मेहनत है। मनुष्य जो बहुत धन दान करते हैं तो राजाई घर में जन्म लेते हैं।
गरीब भी अपनी हिम्मत अनुसार जो कुछ दान करते होंगे तो वह भी राजा बनते हैं।
जो पूरे भगत होते हैं वह दान पुण्य भी करते हैं। साहूकारों से पाप जास्ती होते होंगे।
गरीबों में श्रद्धा बहुत रहती है। वह बहुत प्यार से थोड़ा भी दान करते हैं तो बहुत
मिलता है। गरीब भक्ति भी बहुत करते हैं। दर्शन दो नहीं तो हम गला काट देते हैं।
साहूकार ऐसे नहीं करेंगे। साक्षात्कार भी गरीबों को होते हैं। वही दान पुण्य करते हैं
, राजायें भी वह बनते हैं। पैसे वालों को अहंकार रहता है। यहाँ भी गरीबों को
21 जन्म का सुख मिलता है। गरीब जास्ती हैं। साहूकार पिछाड़ी में आयेंगे।
तो भारत जो इतना ऊंच था सो फिर इतना गरीब कैसे हुआ, तुम समझते हो।
अर्थक्वेक आदि में सब महल आदि चले जायेंगे तो गरीब हो जायेगा। रावण राज्य
होने से हाहाकार हो जाता है तो फिर ऐसी चीजें रह न सकें। हर चीज की आयु
तो होती है ना। वहाँ जैसे मनुष्यों की आयु बड़ी होती है वैसे मकान की भी आयु
बड़ी होती है। सोने के, मार्बल के बड़े-बड़े मकान बनते जायेंगे। सोने के तो और
ही मजबूत होंगे। नाटक में भी दिखाते हैं ना – लड़ाई होती है, मकान टूट फूट
जाते हैं। फिर बन जाते हैं। उन्हों की बनावट ऐसी होती है। यह जो स्वर्ग के महल
आदि बनायेंगे, ऐसे तो नहीं दिखायेंगे मिस्त्र लोग कैसे मकान बनाते हैं। हाँ समझते
हैं वही मकान होंगे। आगे चल तुमको साक्षात्कार होगा। ऐसा विवेक कहता है।
इन बातों से बच्चों का तैलुक नहीं है। बच्चों को तो पढ़ाई पढ़नी है। स्वर्ग का
मालिक बनना है। स्वर्ग और नर्क अनेक बार पास हुआ है। अभी दोनों पास
हुए हैं। अभी है संगम। सतयुग में यह नॉलेज नहीं होगी। इस समय तुम बच्चों
को पूरी नॉलेज है। लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य किसने दिया था। अभी तुम बच्चों
को मालूम है। इन्होंने यह वर्सा किससे पाया। यहाँ पढ़ाई पढ़कर स्वर्ग के मालिक
बनते हैं। फिर वहाँ जाकर महल आदि बनाते हैं। सर्जन भी बड़े-बड़े हॉस्पिटल बनाते
है ना। बाप तुम बच्चों को दिन प्रतिदिन अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स सुना रहे हैं।
तुम्हारा धन्धा ही है – मनुष्यों को सुजाग करना, रास्ता बताना। जैसे बाप कितना
प्यार से बैठ समझाते हैं। देह-अभिमान की दरकार नहीं। बाप को कभी देह-अभिमान
नहीं हो सकता। तुमको मेहनत सारी देही-अभिमानी होने में लगती है। जो देही-अभिमानी
बन बाप का बैठ परिचय देते हैं, गोया बहुतों का कल्याण करते हैं। पहले देह-अभिमान
आने से फिर और विकार आते हैं। लड़ना, झगड़ना, नवाबी से चलना, देह-अभिमान है।
भल अपना राजयोग है, तो भी बहुत साधारण रहना है। थोड़ी चीज में अहंकार
आ जाता है। घड़ी फैशनबुल देखी तो दिल होगी यह पहनें। ख्याल चलता रहेगा।
इसको भी देह-अभिमान कहा जाता है। अच्छी ऊंची चीज होगी तो सम्भालना पड़ेगा।
गुम होगी तो ख्याल होगा। अन्त समय कुछ भी याद आया तो पद भ्रष्ट हो जायेगा।
यह देह- अभिमान की आदतें हैं। फिर सर्विस बदले डिससर्विस भी जरूर करेंगे।
रावण ने तुमको देह-अभिमानी बनाया है। देखते हो बाबा कितना साधारण चलते हैं।
हर एक की सर्विस देखी जाती है। महारथी बच्चों को अपना शो करना है। महारथियों
को ही लिखा जाता है तुम फलानी जगह जाकर भाषण करो। एक दो को बुलाते हैं।
लेकिन बच्चों में देह-अभिमान बहुत रहता है। भाषण में भल अच्छे हैं परन्तु आपस
में रूहानी स्नेह नहीं है। देह-अभिमान लून पानी बना देता है। कोई बात में झट बिगड़
पड़ना यह भी नहीं होना चाहिए इसलिए बाबा कहते हैं कोई को भी पूछना है तो बाबा
से आकर पूछे। कोई कहे बाबा आपको कितने बच्चे हैं? कहूँगा बच्चे तो अनगिनत
हैं परन्तु कोई कपूत, कोई सपूत अच्छे-अच्छे हैं। ऐसे बाप का तो फरमानबरदार,
वफादार बनना चाहिए ना। अच्छा -मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार: 
१.देह-अभिमान में आकर किसी भी प्रकार का फैशन नहीं करना है। जास्ती शौक
नहीं रखने हैं। बहुतबहुत साधारण होकर चलना है।
२. आपस में बहुत-बहुत रूहानी स्नेह से चलना है, कभी भी लूनपानी नहीं होना है।
बाबा का सपूत बच्चा बनना है। अहंकार में कभी नहीं आना है।

वरदान: मनन द्वारा बाप की प्रॉपर्टी को अपनी प्रॉपर्टी बनाने वाले दिव्य बुद्धिवान भव!  
बाप द्वारा जो भी खजाना मिलता है, उसे मनन करो तो अन्दर समाता जायेगा।
प्रॉपर्टी तो सबको एक जैसी मिली हुई है लेकिन जो मनन करके उसे अपना बनाते हैं,
उन्हें उसका नशा और खुशी रहती है इसलिए कहा जाता है-अपनी घोट तो नशा चढ़े।
जो मनन की मस्ती में सदा मस्त रहते हैं उन्हें दुनिया की कोई भी चीज, उलझन
आकार्षित नहीं कर सकती। उन्हें दिव्य बुद्धि का वरदान स्वत: मिल जाता है।

स्लोगन: मन की उलझन को समाप्त करने के लिए निर्णय शक्ति को बढ़ाओ।



14-03-2016, Monday

14/03/16 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, it is your duty to awaken all human beings and show them the path.

The more soul conscious you become and the more you give the Father's introduction to others, the more benefit there will be.
Question: On the basis of which speciality can poor children go ahead of the wealthy?
Answer: Poor children have a lot of faith in giving donations and performing charity. Poor people perform devotion with a lot of love. It is the poor who have visions. The wealthy have intoxication of their wealth. They commit more sin and this is why poor children can go ahead of them.
Song: Salutations to Shiva!  
Om Shanti
“You are the Mother and Father and we are Your children”. This praise is definitely sung to the Supreme Father, the Supreme Soul. This is His clear praise because He is the Creator. Worldly parents are creators of their children. The Father from beyond this world is also called the Creator. They sing a lot of praise of Him: The Friend, the Support… There isn't as much praise for a physical father. The praise of the Supreme Father, the Supreme Soul, is distinct. Children sing praise that He is the Ocean of Knowledge and the knowledge-full One. He has the full knowledge. It isn't knowledge of a study for the livelihood of the body. He is called the Ocean of Knowledge, the knowledge-full One, so He definitely has knowledge but what knowledge? He has the knowledge of how the cycle turns. He is the Ocean of Knowledge, the Purifier. Krishna cannot be called the Ocean of Knowledge or the Purifier. His praise is unique. Both are residents of Bharat. Shiv Baba is praised in Bharat. It is also here that people celebrate the birthday of Shiva. They celebrate Krishna’s birthday too. They also celebrate the Gita’s birthday. These three birthdays are the main ones. Now, the question arises: Whose birthday comes first? Shiva’s or Krishna’s? People have completely forgotten the Father. They celebrate the birthday of Krishna with love and a lot of splendour. No one knows much about Shiva’s birthday nor do they praise it that much. What did Shiva come and do? No one knows His biography. They have written many things about Krishna: he abducted the gopis and did this and that! They even have a special magazine in which they write about the divine activities of Krishna. There are no divine activities of Shiva. When was Krishna’s birthday and when was the Gita’s birthday? Only when Krishna grows a little older could he relate knowledge. They show how the Krishna baby was carried across the river in a basket. They show him in adolescence standing in a chariot and spinning a discus. He must be about 16 or 17 years old then. All the rest of the pictures are of his childhood. When did he relate the Gita? He wouldn't have related it at the time they say that he abducted so-and-so or that he did this and that. It wouldn't seem right to have knowledge at that time. Only when he becomes mature could he relate knowledge. He would have had to relate the Gita some time after that! What did Shiva do? They don't know anything; they are sleeping in the sleep of ignorance. The Father says: No one knows My biography. What did I do? Only I am called the Purifier. When I come, I have the Gita with Me. I enter an old, ordinary, experienced chariot. It is only in Bharat that you celebrate Shiva’s birthday, Krishna’s birthday and the Gita’s birthday. These three are the main ones. Rama’s birthday takes place later. Whatever happens at this time is celebrated later. There are no birthday celebrations etc. in the golden and silver ages. The moon dynasty claim their inheritance from the sun dynasty; there isn't praise of anyone. They simply celebrate the coronation of the kings. Nowadays, everyone celebrates their birthdays. That is something common. Krishna took birth and then, when he grew up, he ruled the kingdom. There is no question of praise for that. There was the kingdom of happiness in the golden and silver ages. When and how was that kingdom established? This is in the intellects of you children. The Father says: Children, I come at the confluence age of every cycle. The end of the iron age is the impure world and the beginning of the golden age is the pure world. I am the Father and I also give you children your inheritance. I gave you your inheritance in the previous cycle too, and this is why you have celebrations. However, because you forgot the name, you inserted Krishna’s name. Shiva is the greatest of all. Only after there has first been His birthday can there then be the birthday of corporeal human beings. In fact, all souls come down from up above. I too incarnate. Krishna takes birth from his mother's womb and also receives sustenance. Everyone has to take rebirth. Shiv Baba doesn’t take rebirth, although He does come. Therefore, the Father sits here and explains this. Brahma, Vishnu and Shankar are shown as the Trimurti. Establishment takes place through Brahma because Shiva doesn’t have a body of His own. He Himself sits here and explains that He enters the old body of this one. This one doesn’t know of his own births. This is the last of his many births. First of all, explain whether Shiva’s birthday or Krishna’s birthday is greater. If Krishna had related the Gita, the Gita’s birthday would be many years after Shri Krishna’s, when Krishna had grown up. All of these matters have to be understood. However, immediately after Shiva’s birthday, it is the Gita’s birthday. All of these points have to be kept in your intellects. There are many points. Unless you note them down you will not be able to remember them. Baba is so close and this is His chariot but, in spite of that, it is difficult to remember all the points at that time. Baba has said: Explain to everyone the secret of the two fathers. Since they celebrate the birthday of Shiv Baba, He must definitely come. Just as Christ and Buddha etc. come to establish their own religions, so that One is a soul who also comes and enters another to establish a religion. He is Heavenly God, the Father, the Creator of the World. Therefore, He would surely create a new world. He would not create an old world. The new world is called heaven and it is now hell. Baba says: I come at the confluence age of every cycle and give you children the knowledge of Raja Yoga. This is the ancient yoga of Bharat. Who taught it? They made the name of Shiv Baba disappear; then they say that the God of the Gita is Shri Krishna or Vishnu etc. Shiv Baba taught Raja Yoga, but no one knows this. They show Shiva’s birthday as the birthday of the incorporeal One. How did He come and what did He do when He came? He is the Bestower of Salvation for All, the Liberator and the Guide. All souls now need the Guide, the Supreme Soul. He too is a soul. Just as human beings are guides for human beings, in the same way, a soul is needed to be a guide for souls. That can only be the Supreme Soul. All human beings take rebirth and become impure. So, who would purify them and take them back? The Father says: Only I come and show you the way to become pure. Remember Me! Krishna cannot say: Renounce the relations of the body! He takes 84 births. He has all relationships. The Father doesn’t have a body of His own. The Father teaches you this spiritual pilgrimage. This spiritual knowledge is from the spiritual Father for the spiritual children. Krishna is not anyone’s spiritual father. I am the spiritual Father of everyone. I have come as the Guide. It is of Me that it is said: Liberator, Guide, blissful, peaceful, ever-pure etc. I am now giving you souls knowledge. The Father says: I am giving it to you through this body. You are also receiving knowledge through your bodies. He is God the Father. His form has also been shown. Just as a soul is a point, so the Supreme Soul is also a point. This is the wonder of nature. In fact, the biggest wonder is how parts of 84 births are recorded in such a tiny star! This is a wonder! The Father too has a part in the drama. He also serves you on the path of devotion. The part of 84 births is recorded in you souls eternally. This is called the wonder of nature. How can you describe this? A soul is so tiny! People are amazed when they hear these things. A soul is just like a star. You souls experience 84 births accurately. You souls will also experience happiness accurately. This is a wonder of nature! The Father too is just a soul, the Supreme Soul. All the knowledge is recorded in Him and He explains it to you children. These are new things. New people who come and hear this say that your knowledge is not mentioned in any of the scriptures etc. Nevertheless, the number of those who heard it in the previous cycle and claimed their inheritance will continue to increase. It takes time. Many subjects are created. That is easy. Effort is required to become a king. People who donate a lot of wealth take their next birth in a royal family. Even the poor who donate according to their courage become kings. Those who are complete devotees also donate and perform charity. The wealthy commit more sin. The poor have more faith. Because they donate even the little they have with a lot of love, they receive a lot in return. The poor also do a lot of devotion: Grant me a vision or I will cut my throat! The wealthy do not do this. It is the poor who have visions. They are the ones who donate and perform charity; they are the ones who become kings. Those who have a lot of money also have arrogance. Here, too, the poor receive happiness for 21 births. There are more poor ones; the wealthy ones will come later. Only you understand how Bharat, which was so wealthy, has now become so poor. All the palaces etc. will disappear in the earthquakes etc. and it will become poor. When it becomes the kingdom of Ravan, there are many cries of distress and so things don’t remain the same. Everything has a duration. Just as the lifespan of people there are long, so, the duration of buildings is also long. Many big buildings will continue to be built of gold and marble etc. Buildings of gold are even stronger. In a drama (film) when a war takes place, they show how buildings are completely demolished and how they are then built again. They are constructed in such a way. When the palaces of heaven are built, they do not show how the carpenters etc. build them. Yes, you can understand that the same buildings will exist there. As you progress further, you will have visions. This is what reason says. You children have no connection with those things. You children have to study and become the masters of heaven. Heaven and hell have been and gone many times. Both have now passed. It is now the confluence age. This knowledge will not exist in the golden age. At this time, you children have the full knowledge. Who gave Lakshmi and Narayan their kingdom? You children now know this. From whom did they receive their inheritance? They studied here and became the masters of heaven. Then they went there and had the palaces etc. created just as surgeons here have big hospitals etc. built. The Father gives you children very many good points every day. Just as the Father sits here and explains with so much love, so it is your business to awaken all the people and show them the path. There is no need for body consciousness. The Father can never have body consciousness. All the effort you make is to become soul conscious. Those who become soul conscious can sit with them and give the Father’s introduction to benefit many. Once body consciousness comes, all the other vices also come. To fight, to quarrel, to be bossy are all body consciousness. Even though yours is Raja Yoga, you have to remain very ordinary. Arrogance comes in even the slightest thing you do. When you see a fashionable watch, your heart desires to wear it; you continue to think about it. That too is called body consciousness. If you have something very good and expensive, you would have to look after it. If you lost it, you would have thoughts about it. If you remember anything in your final moments, your status will be destroyed. These habits are of body consciousness. Then, instead of service being done, there would definitely be disservice done. Ravan has made you body conscious. You can see how Baba does everything so ordinarily. Each one’s service is seen. Maharathi children have to reveal themselves. It is only written to the maharathis: Go to this place and give a lecture there. They invite one another. However, there is a lot of body consciousness in children. Although they are good at giving lectures, there isn’t that spiritual love amongst them. Body consciousness makes you become like salt water. You shouldn’t become upset so quickly over trivial matters. This why Baba says: If you want to ask anyone, ask Baba! Some ask: Baba, how many children do you have? Baba says: I have countless children, but some are unworthy whereas others are worthy and very good. You should be obedient and faithful to such a Father! Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna: 
1. Don't follow fashion by becoming body conscious. Don't have many interests. Continue to live very simply.
2. Interact with one another with a lot of spiritual love. Never become like salt water. Become Baba's worthy children. Never become arrogant.
Blessing: May you be one with a divine intellect who makes the Father’s property your own property by churning it. Churn all the treasures you receive from the Father and they will continue to merge into you. Everyone has received the same property, but those who churn it and make it their own have intoxication and happiness. This is why it is said: When you grind your own ingredients your intoxication rises. Those who remain constantly intoxicated in the intoxication of churning cannot be attracted by anything or any problem of the world. They automatically receive the blessing of a divine intellect.
Slogan: In order to finish any problems in your mind, increase the power to decide.
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Monday, January 25, 2016

25-01-2016's Murli

२५-०१-२०१६, सोमवार

"मीठे बच्चे– तुम्हारे मुख से कभी भी हे ईश्वर, हे बाबा शब्द नहीं निकलना चाहिए, यह तो भक्ति मार्ग की प्रैक्टिस है।"-  
प्रश्न: तुम बच्चे सफेद ड्रेस पसन्द क्यों करते हो ? यह किस बात का प्रतीक है ?
उत्तर: अभी तुम इस पुरानी दुनिया से जीते जी मर चुके हो इसलिए तुम्हें सफेद ड्रेस पसन्द है। यह सफेद ड्रेस मौत को सिद्ध करता है। जब कोई मरता है तो उस पर भी सफेद कपड़ा डालते हैं, तुम बच्चे भी अभी मरजीवा बने हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:
१.भाई-भाई की दृष्टि का अभ्यास करते हुए लौकिक बन्धनों से तोड़ निभाना है। बड़ी युक्ति से चलना है। विकारी दृष्टि बिल्कुल नहीं जानी चाहिए। कयामत के समय सम्पूर्ण पावन बनना है।
२.बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए अच्छी रीति पढाई करनी है और पतित-पावन बाप से योग लगाकर पावन बनना है।
वरदान: विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाले सर्व समर्पण वा ट्रस्टी भव!  
जो आईवेल के लिए पुराने संस्कारों की प्रापर्टी किनारे कर रख लेते हैं। तो माया किसी न किसी रीति से पकड़ लेती है। पुराने रजिस्टर की छोटी सी टुकड़ी से भी पकड़ जायेंगे, माया बड़ी तेज है, उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है इसलिए विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करो। जरा भी किसी कोने में पुराने खजाने की निशानी न हो– इसको कहा जाता है सर्व समर्पण, ट्रस्टी वा यज्ञ के स्नेही सहयोगी।
स्लोगन: किसी की विशेषता के कारण उससे विशेष स्नेह हो जाना–ये भी लगाव है। 

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25-01-2016, Monday

Sweet children, the words "Oh God! Oh Baba!" should never emerge from your mouths. That practice belongs to the path of devotion.  
Question: Why do you children prefer to dress in white? What does it symbolize?
Answer: You have now died alive from this old world and this is why you prefer to dress in white. This white dress symbolizes death. When someone dies, he is covered with a white sheet. You children have now died alive.
Essence for Dharna: 
1.While practising maintaining your vision of brotherhood, fulfil your responsibilities to your relations. Interact with everyone with great tact. There should be no criminal vision at all. At this time of settlement you must become completely pure.
2.In order to claim your full inheritance from the Father, study very well and become pure by having yoga with the Purifier.
Blessing: May you be a completely surrendered trustee who finishes any trace of the progeny of vices.  
Those who keep the property of their old sanskars for a time of need get caught by Maya in one way or another. You can be caught by even a small piece of paper of your old register. Maya is very sharp; her catching power is no less. Therefore, finish even any trace of the progeny of vice. Let there not be the slightest sign of the old treasures remaining. This is known as being a completely surrendered trustee and being loving and co-operative with the yagya.
Slogan: To have special love for someone because of his or her speciality is attachment.  

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Sunday, January 17, 2016

15-01-16's Murli

१५-०१-१६, शुक्रवार

15-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे - कभी भी अपने हाथ में लॉ नहीं उठाओ, यदि किसी की भूल हो तो बाप को रिपोर्ट करो, बाप सावधानी देंगे"  
प्रश्न: बाप ने कौन सा कान्ट्रैक्ट (ठेका) उठाया है?
उत्तर: बच्चों के अवगुण निकालने का कान्ट्रैक्ट एक बाप ने ही उठाया है। बच्चों की खामियां बाप सुनते हैं तो वह निकालने के लिए प्यार से समझानी देते हैं। अगर तुम बच्चों को किसी की खामी दिखाई देती है तो भी तुम अपने हाथ में लॉ नहीं उठाओ। लॉ हाथ में लेना यह भी भूल है।
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) किसी के अवगुण देख उसकी निंदा नहीं करना है। जगह-जगह पर उसके अवगुण नहीं सुनाने हैं। अपना मीठापन नहीं छोड़ना है। क्रोध में आकर किसी का सामना नहीं करना है।
2) सबको सुधारने वाला एक बाप है, इसलिए एक बाप को ही सब सुनाना है, अव्यभिचारी बनना है। मुरली कभी भी मिस नहीं करनी है।
वरदान: पुराने संस्कार रूपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में सामने वाले समान और सम्पूर्ण भव!  
बाप समान वा सम्पूर्ण बनने के लिए सृष्टि की कयामत के पहले अपनी कमजोरियों और कमियों की कयामत करो। कोई भी उलझन का नाम निशान न रहे ऐसा अपने को उज्जवल बनाओ। जैसे जन्म परिवर्तन के बाद पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं ऐसे पुरानी बातों को, पुराने संस्कारों को भस्म करो, अस्थियों को भी सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा दो तब कहेंगे समान और सम्पूर्ण।
स्लोगन: विस्तार को सार में समाने की जादूगरी सीख लो तो बाप समान बन जायेंगे।  


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15-01-16, Friday

15/01/16 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, never take the law into your own hands. If someone makes a mistake, report it to the Father and the Father will caution that soul.  
Question: What contract does the Father have?
Answer: Only the one Father has the contract of removing the children’s defects. When the Father hears of the children's weaknesses, He explains to them with love to help them remove them: Children, if you see anyone's weakness, don't take the law into your own hands. It is a mistake to take the law into your own hands.
Essence for Dharna:
1.Never defame anyone when you see their defects. Don't mention anyone's defects everywhere. Never let go of your sweetness. Never become angry or oppose anyone.
2.Only the one Father reforms everyone. Therefore, tell everything to the one Father and become unadulterated. Never miss a murli.
Blessing: May you become equal and perfect by merging the ashes of your old sanskars into the ocean of the perfect stage. 
In order to become equal and perfect, the same as the Father, destroy your weaknesses and defects before the destruction of the world. Let no name or trace of any confusion or problem remain. Make yourself bright and clear. When you take a new birth, everything of the past birth is forgotten. Similarly, burn your old things and old sanskars. Merge the ashes into the ocean of the perfect stage and you will then be said to be equal and perfect.
Slogan: Learn the magic of condensing all expansion into its essence and you will become equal to the Father.  

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Friday, December 11, 2015

10-11-2015's Murli

१०-१२-२०१५, गुरुवार

“मीठे बच्चे - यह पतित दुनिया एक पुराना गांव है, यह तुम्हारे रहने लायक नहीं, तुम्हें अब नई पावन दुनिया में चलना है”  
प्रश्न: बाप अपने बच्चों को उन्नति की कौन सी एक युक्ति बताते हैं ?
उत्तर: बच्चे, तुम आज्ञाकारी बन बापदादा की मत पर चलते रहो। बापदादा दोनों इकट्ठे हैं, इसलिए अगर इनके कहने से कुछ नुकसान भी हुआ तो भी रेस्पान्सिबुल बाप है, सब ठीक कर देगा। तुम अपनी मत नहीं चलाओ, शिवबाबा की मत समझकर चलते रहो तो बहुत उन्नति होगी।
धारणा के लिए मुख्य सार: 
१.बन्धन काटने की युक्ति रचनी है। जिगरी बाप से प्रीत रखनी है। बाप का सबको पैगाम दे, सबका कल्याण करना है।
२.दूरादेशी बुद्धि से इस बेहद के खेल को समझना है। बेगर टू प्रिन्स बनने की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। याद का सच्चा-सच्चा चार्ट रखना है।
वरदान: सदा भगवान और भाग्य की स्मृति में रहने वाले सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान भव!   
संगमयुग पर चैतन्य स्वरूप में भगवान बच्चों की सेवा कर रहे हैं। भक्ति मार्ग में सब भगवान की सेवा करते लेकिन यहाँ चैतन्य ठाकुरों की सेवा स्वयं भगवान करते हैं। अमृतवेले उठाते हैं, भोग लगाते हैं, सुलाते हैं। रिकार्ड पर सोने और रिकार्ड पर उठने वाले, ऐसे लाडले वा सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान हम ब्राह्मण हैं-इसी भाग्य की खुशी में सदा झूलते रहो। सिर्फ बाप के लाडले बनो, माया के नहीं। जो माया के लाडले बनते हैं वह बहुत लाडकोड करते हैं।
स्लोगन: अपने हर्षितमुख चेहरे से सर्व प्राप्तियों की अनुभूति कराना-सच्ची सेवा है।

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10-12-2015, Thursday

Sweet children, this impure world is an old village. It is not worthy for you to live in. You now have to go to the pure, new world.  
Question: Which one method does the Father tell His children about for them to make progress ?
Answer: Children, be obedient and continue to follow BapDada's directions. Bap and Dada are together. Therefore, if there is any harm caused through his directions (Brahma’s), the Father is responsible and He will put everything right. You mustn't use your own dictates. Continue to move along considering these to be Shiv Baba's directions and there will be great progress.
Essence for Dharna: 
1.Create methods to cut your bondages. Have deep love in the heart for the Father. Give everyone the Father's message and bring benefit to everyone.
2.Understand this unlimited play with a far-sighted intellect. Pay full attention to the study of changing from a beggar to a prince. Keep a true chart of remembrance.
Blessing: May you be a fortunate one who has the most elevated fortune and remain constantly aware of God and your fortune.  
At the confluence age, God is serving you children in the living form. On the path of devotion, everyone serves God, but here, God, Himself, is serving all of you living ‘thakurs’ (idols). He wakes you up at amrit vela, offers you bhog and puts you to sleep. We are the most loved and most elevated Brahmins who go to sleep with the record playing and who wake up with the record playing. Constantly continue to swing in the happiness of this fortune. Be loved by only the Father, not by Maya. Those who are loved by Maya are very much spoilt.
Slogan: To give the experience of all attainments through your cheerful face is real service.  

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Wednesday, December 9, 2015

09-12-2015's Murli

०९-१२-२०१५, बुधवार

“मीठे बच्चे - तुम्हें अभी बाप द्वारा दिव्य दृष्टि मिली है, उस दिव्य दृष्टि से ही तुम आत्मा और परमात्मा को देख सकते हो”  
प्रश्न: ड्रामा के किस राज़ को समझने वाले कौन-सी राय किसी को भी नहीं देंगे ?
उत्तर: जो समझते हैं कि ड्रामा में जो कुछ पास्ट हो गया वह फिर से एक्युरेट रिपीट होगा, वह कभी किसी को भक्ति छोड़ने की राय नहीं देंगे। जब उनकी बुद्धि में ज्ञान अच्छी रीति बैठ जायेगा, समझेंगे हम आत्मा हैं, हमें बेहद के बाप से वर्सा लेना है। जब बेहद के बाप की पहचान हो जायेगी तो हद की बातें स्वत: खत्म हो जायेंगी।
धारणा के लिए मुख्य सार: 
१.आंखों को सिविल बनाने की मेहनत करनी है। बुद्धि में सदा रहे हम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहन हैं, क्रिमिनल दृष्टि रख नहीं सकते।
२.शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते बुद्धि का योग एक बाप से लगाना है, हद की सब बातें छोड़ बेहद के बाप को याद करना है। बेहद का सन्यासी बनना है।
वरदान: किनारा करने के बजाए हर पल बाप का सहारा अनुभव करने वाले निश्चय बुद्धि विजयी भव!  
विजयी भव की वरदानी आत्मा हर पल स्वयं को सहारे के नीचे अनुभव करती है। उनके मन में संकल्पमात्र भी बेसहारे वा अकेलेपन का अनुभव नहीं होता। कभी उदासी या अल्पकाल के हद का वैराग्य नहीं आता। वे कभी किसी कार्य से, समस्या से, व्यक्ति से किनारा नहीं करते लेकिन हर कर्म करते हुए, सामना करते हुए, सहयोगी बनते हुए बेहद की वैराग्य वृत्ति में रहते हैं।
स्लोगन: एक बाप की कम्पन्नी में रहो और बाप को ही अपना कम्पैनियन बनाओ। 

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09-12-2015, Wednesday

Sweet children, you have now received divine vision from the Father. Only with this divine vision can you see souls and the Supreme Soul.  
Question: By understanding which secret of the drama will you never give a particular type of advice to anyone ?
Answer: When you understand that whatever happened in the drama in the past repeats accurately, you will never advise anyone to stop performing devotion. When this knowledge sits in their intellects very well, when they understand that they are souls and that they have to claim their inheritance from the unlimited Father, and when they also recognize Him, all their limited things will automatically finish.
Essence for Dharna: 
1.Make effort to make your eyes civil. Let your intellects always remain aware that you are brothers and sisters, children of Prajapita Brahma. Therefore, you must not have criminal vision.
2.While performing actions for the livelihood of your body, connect your intellect’s yoga to the one Father. Renounce all limited things and remember the unlimited Father. Become an unlimited renunciate.
Blessing: May you have faith in the intellect and thereby become victorious, so that instead of stepping away, you experience the Father’s support at every moment.  
Souls who have received the blessing of being victorious experience themselves to be supported at every moment. Their minds do not have even the slightest thought of experiencing themselves to be without support or alone. They are never sad nor do they have limited or temporary disinterest. They never step away from any task, problem or person, but while performing every action and facing everything, they are co-operative and maintain an attitude of unlimited disinterest.
Slogan: Stay in the company of the one Father and make the Father your Companion.  
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