Monday, October 13, 2014

12-10-2014's Murli

१२-१०-२०१४, रविवार


“अव्यक्त-बापदादा”   रिवाइज:18-01-98   मधुबन  
 “सकाश देने की सेवा करने के लिए लगावमुक्त बन बेहद के वैरागी बनो” 
आज का दिन विशेष स्नेह का दिन है । अमृतवेले से लेकर चारों ओर के बच्चे अपने दिल के स्नेह को बापदादा के अर्थ अर्पित कर रहे थे । सर्व बच्चों के स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पड़ती जा रही थी । आज के दिन एक तरफ स्नेह के मोतियों की मालायें, दूसरे तरफ मीठे-मीठे उल्हनों की मालायें भी थी । लेकिन इस वर्ष उल्ह्नों में अन्तर देखा । पहले उल्हनें होते थे हमें भी साथ ले जाते, हमने साकार पालना नहीं ली... । इस वर्ष मैजारिटी का उल्हना यह रहा कि अब बाप समान बन आपके पास पहुँच जाएं । समान बनने का उमंग-उत्साह मैजारिटी में अच्छा रहा । समान बनने की इच्छा बहुत तीव्र है, बन जायें और आ जायें, यह संकल्प रूहरिहान में बहुत बच्चों का रहा । बापदादा भी यही बच्चों को कहते हैं - समान भव, सम्पन्न भव, सम्पूर्ण भव । इसका साधन सदा के लिए बहुत सहज है, सबसे सहज साधन है - सदा स्नेह के सागर में समा जाओ । जैसे आज का दिन स्नेह में समाये हुए थे और कुछ याद था? सिवाए बापदादा के और कुछ याद रहा? उठते, बैठते स्नेह में समाये रहे । चलते-फिरते क्या याद रहा? ब्रह्मा बाप के चरित्र और चित्र, चित्र भी सामने रहा और चरित्र भी स्मृति में रहे । सभी ने स्नेह का अनुभव आज विशेष किया ना? मेहनत लगी? सहज हो गया ना! स्नेह ऐसी शक्ति है जो सब कुछ भुला देती है । न देह याद आती, न देह की दुनिया याद आती । स्नेह मेहनत से छुड़ा देता है । जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है । स्नेह सदा सहज बापदादा का हाथ अपने ऊपर अनुभव कराता है । स्नेह छत्रछाया बन मायाजीत बना देता है । कितनी भी बड़ी समस्या रूपी पहाड़ हो, स्नेह पहाड़ को भी पानी जैसा हल्का बना देता है । तो स्नेह में रहना आता है ना? आज रहकर देखा ना! कुछ याद रहा? नहीं रहा ना! बाबा, बाबा और बाबा एक ही याद में लवलीन रहे । तो बापदादा कहते हैं और कोई पुरुषार्थ नहीं करो, स्नेह के सागर में समा जाओ । समाना आता है? कभी-कभी बच्चे स्नेह के सागर में समाते हैं लेकिन थोड़ा सा समय समाया, फिर बाहर निकल आते हैं । अभी-अभी कहेंगे बाबा, मीठा बाबा, प्यारा बाबा और अभी-अभी बाहर निकलते और बातों में लग जाते हैं । बस सिर्फ थोड़ी-सी जैसे कोई डुबकी लगाके निकल आता है ना, ऐसे स्नेह में समाया, डुबकी लगाई, निकल आये । समाये रहो, तो स्नेह की शक्ति सबसे सहज मुक्त कर देगी ।  सभी बच्चों को ब्राह्मण जन्म के आदि का अनुभव, स्नेह ने ब्राह्मण बनाया । स्नेह ने परिवर्तन किया । अपने जन्म के आदि समय का अनुभव याद है ना? ज्ञान और योग तो मिला लेकिन स्नेह ने आकर्षित कर बाप का बनाया । अगर सदा स्नेह की शक्ति में रहो तो सदा के लिए मेहनत से मुक्त हो जायेंगे । वैसे भी मुक्ति वर्ष मना रहे हैं ना । तो मेहनत से भी मुक्त, उसका साधन है - स्नेह में समाये हुए रहो । स्नेह का अनुभव सभी को है ना? या नहीं है? अगर किसी से भी पूछेंगे कि बापदादा से सबसे ज्यादा स्नेह किसका है? तो सभी हाथ उठायेंगे मेरा है । (सबने हाथ हिलाया) साइलेन्स का हाथ उठाओ, आवाज वाला नहीं । तो बापदादा आज यही कहते हैं कि स्नेह की शक्ति सदा कार्य में लगाओ । सहज है ना! योग लगाते हो - देह भूल जाए, देह की दुनिया भूल जाए, मायाजीत बनें । जब स्नेह की छत्रछाया में रहेंगे, तो स्नेह की छत्रछाया के अन्दर माया नहीं आ सकती है । स्नेह के सागर के बाहर आते हो ना तो माया देख लेती है और अपना बना लेती है, निकलो ही नहीं । समाये रहो । स्नेही कोई भी कार्य करते हुए स्नेही को नहीं भूल सकता । स्नेह में खोया हुआ हर कार्य करता । तो जैसे आज के दिन खोये रहे, ऐसे सदा स्नेह में नहीं रह सकते हो क्या? स्नेह सहज ही समान बना देगा क्योंकि जिसके साथ स्नेह है उस जैसा बनना, यह मुश्किल नहीं होता है । ब्रह्मा बाप से दिल का प्यार है, ब्रह्मा बाप का भी बच्चों से अति स्नेह है । सदा एक-एक बच्चे को इमर्ज कर विशेष समान बनने की सकाश देते रहते हैं । जैसे पास्ट जीवन में एक-एक रत्न को देखते, हर एक रत्न के मूल्य को जानते विशेष कार्य में लगाते, ऐसे अभी भी एक-एक रत्न को विशेष रूप से विशेषता को कार्य में लगाने का सदा संकल्प देते रहते । और हर एक के विशेषता की वाह-वाह गाते रहते । वाह मेरा अमूल्य रत्न । कई बच्चे सोचते हैं कि ब्रह्मा बाप वतन में क्या करते हैं? हम तो यहाँ सेवा करते रहते और ब्रह्मा बाप वहाँ वतन में क्या करते? लेकिन बाप कहते हैं जैसे साकार रूप में सदा बच्चों के साथ रहे, ऐसे वतन में भी रहते हैं । बच्चों के साथ ही रहते हैं, अकेले नहीं रहते हैं । बच्चों के बिना बाप को भी मजा नहीं आता । जैसे बच्चों को बाप के बिना कुछ सूझता नहीं, ऐसे बाप को भी बच्चों के बिना और कुछ नहीं सूझता । अकेले नहीं रहते हैं, साथ में रहते हैं । साकार में तो साथ का अनुभव साकार रूप में थोड़े बच्चे कर सकते थे, अब तो अव्यक्त रूप में, हर बच्चे के साथ जिस समय चाहे, जब चाहे साथ निभाते रहते हैं । जैसे चित्रो में दिखाते हैं ना - उन्होंने एक-एक गोपी के साथ कृष्ण को दिखा दिया लेकिन यह इस समय का गायन है । अब अव्यक्त रूप में हर बच्चे के साथ जब चाहे, चाहे रात को दो बजे, अढ़ाई बजे हैं, किसी भी टाइम साथ निभाते रहते हैं । साकार में तो सेंटर्स पर चक्कर लगाना कभी-कभी होता लेकिन अब अव्यक्त रूप में तो पवित्र प्रवृत्ति में भी चक्कर लगाते हैं । बाप को काम ही क्या है, बच्चों को समान बनाके साथ ले जाना, यही तो काम है ना और क्या है? तो इसी में ही बिजी रहते हैं । तो आज के दिन बापदादा बच्चों को विशेष मेहनत से मुक्त भव का वरदान देते हैं । कोई भी कार्य करो तो डबल लाइट बनके कार्य करो, तो मेहनत मनोरंजन अनुभव करेंगे क्योंकि बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, युद्ध करना, हार और जीत का खेल करना - यह अच्छा नहीं लगता । तो मुक्त वर्ष मना रहे हो ना! मना रहे हो या मेहनत में लगे हुए हो? आज के दिन विशेष यह वरदान याद रखना - मेहनत से मुक्त भव । यह संगमयुग मेहनत से मुक्त होने का युग है । मौज में रहने का है । अगर मेहनत है तो मौज नहीं हो सकती है । एक ही युग परम आत्मा और आत्माओं का मौज मनाने का युग है । आत्मा, परमात्मा के स्नेह का युग है । मिलन का युग है । तो दृढ़ संकल्प करो कि आज से मेहनत से मुक्त हो जायेंगे । होंगे ना? फिर ऐसे नहीं यहाँ तो हाथ उठाओ और वहाँ जाकर कहो क्या करें, कैसे करें? क्योंकि बापदादा के पास हर एक बच्चे के दृढ़ संकल्प करने का पूरा फाइल है । बापदादा कभी बच्चों का फाइल देखते हैं । बार-बार दृढ़ संकल्प किया है ना । जब से जन्म लिया और अब तक कितने बार संकल्प किया है, यह करेंगे, यह करेंगे.. लेकिन उसको पूरा नहीं किया है । रूहरिहान बहुत अच्छी करते हैं, बापदादा को भी खुश कर देते हैं । जैसे जिज्ञासुओं को प्रभावित कर देते हो ना, तो बापदादा को भी प्रभावित तो कर देते हैं लेकिन दृढ़ संकल्प का प्रभाव थोड़ा समय रहता है, सदा नहीं रहता । तो बापदादा का फाइल तो बढ़ता जाता है । जब भी कोई फंक्शन होता है तो बापदादा की फाइल में एक प्रतिज्ञा पत्र तो जमा हो ही जाता है, इसलिए बापदादा लिखाते नहीं हैं ।  आज भी सभी संकल्प तो कर रहे हैं, अभी कब तक चलता है, फाइल में कागज कब तक रहता है, बाप भी देखते रहते हैं । बच्चों का बाप समान बनना और फाइल खत्म होके फाइनल हो जायेंगे । अभी तो ढेर के ढेर फाइल हैं । तो सिर्फ स्नेह में डूबे रहो, स्नेह के सागर से बाहर नहीं निकलो । ब्रह्मा बाप से दिल का स्नेह है ना? तो स्नेही को फालो करना मुश्किल नहीं होता है । स्नेह के लिए कहते भी हो कि जहाँ स्नेह है, वहाँ जान भी कुर्बान हो जाती है । बापदादा तो जान को कुर्बान करने के लिए नहीं कहते, पुराना जहान कुर्बान कर दो । इसकी फाइनल डेट फिक्स करो । और फंक्शन की डेट तो फिक्स करते हो, 20 तारीख है, 24 तारीख है । इसकी डेट कब फिक्स करेंगे? (इसकी डेट बापदादा फिक्स करें) बापदादा कब शब्द कहते ही नहीं हैं, अब कहते हैं । बापदादा कब पर छोड़ता है क्या? अब कहता है । जो करना है वो अब करो । लेकिन बापदादा तो समर्थ है ना, तो समर्थ के हिसाब से तो अब कहेंगे । बच्चे कब, कब की आदत में हिरे हुए हैं । इसीलिए बापदादा बच्चों को कहते हैं कि यह डेट कब फिक्स करेंगे? आप भी कब, कब कहते हैं तो बाप भी कब कहते हैं । अभी समय प्रमाण सबको बेहद के वैराग्य वृत्ति में जाना ही होगा । लेकिन बापदादा समझते हैं कि बच्चों का समय शिक्षक नहीं बने, जब बाप शिक्षक है तो समय पर बनना - यह समय को शिक्षक बनाना है । उसमें मार्क्स कम हो जाती है । अभी भी कई बच्चे कहते हैं - समय सिखा देगा, समय बदला देगा । समय के अनुसार तो सारे विश्व की आत्मायें बदलेगी लेकिन आप बच्चे समय का इन्तजार नहीं करो । समय को शिक्षक नहीं बनाओ । आप विश्व के शिक्षक के मास्टर विश्व शिक्षक हो, रचता हो, समय रचना है तो हे रचता आत्मायें रचना को शिक्षक नहीं बनाओ । ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनाया, बेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा । आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगाया, धन लगाया, लेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा । तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है । मेरा शरीर है, नहीं । बाबा का रथ है | बाबा के रथ को खिलाता हूँ, मैं खाता हूँ, नहीं । तन से भी बेहद का वैराग्य । मन तो मनमनाभव था ही । धन भी लगाया, लेकिन कभी यह संकल्प भी नहीं आया कि मेरा धन लग रहा है । कभी वर्णन नहीं किया कि मेरा धन लग रहा है या मैंने धन लगाया है । बाबा का भण्डारा है, भोलेनाथ का भण्डारा है । धन को मेरा समझकर पर्सनल अपने प्रति एक रूपये की चीज भी यूज नहीं की । कन्याओं, माताओं की जिम्मेवारी है, कन्याओं-माताओं को विल किया, मेरापन नहीं । समय, खास अपने प्रति नहीं, उससे भी बेहद के वैरागी रहे । इतना सब कुछ प्रकृति दासी होते हुए भी कोई एकस्ट्रा साधन यूज नहीं किया । सदा साधारण लाइफ में रहे । कोई स्पेशल चीज अपने कार्य में नहीं लगाई । वस्त्र तक, एक ही प्रकार के वस्त्र अन्त तक रहे । चेंज नहीं किया । बच्चों के लिए मकान बनाये लेकिन स्वयं यूज नहीं किया, बच्चों के कहने पर भी सुनते हुए उपराम रहे । सदा बच्चों का स्नेह देखते हुए भी यही शब्द रहे - सब बच्चों के लिए है । तो इसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रत्यक्ष जीवन में रही । अन्त में देखो बच्चे सामने हैं, हाथ पकड़ा हुआ है लेकिन लगाव रहा? बेहद की वैराग्य वृत्ति । स्नेही बच्चे, अनन्य बच्चे सामने होते हुए फिर भी बेहद का वैराग्य रहा । सेकण्ड में उपराम वृत्ति का, बेहद के वैराग्य का सबूत देखा । एक ही लगन सेवा, सेवा और सेवा और सभी बातों से उपराम । इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य । अभी समय प्रमाण बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो । बिना बेहद के वैराग्य वृत्ति के सकाश की सेवा हो नहीं सकती । फालो फादर करो । साकार में ब्रह्मा बाप रहा, निराकार की तो बात छोड़ो । साकार में सर्व प्राप्ति का साधन होते हुए, सर्व बच्चों की जिम्मेवारी होते हुए, सरकमस्टांश, समस्यायें आते हुए पास हो गये ना! पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट ले लिया । विशेष कारण बेहद की वैराग्य वृत्ति । अभी सूक्ष्म सोने की जंजीर के लगाव, बहुत महीन सूक्ष्म लगाव बहुत है । कई बच्चे तो लगाव को समझते भी नहीं हैं कि यह लगाव है । समझते हैं - यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है । मुक्त होना है, नहीं । लेकिन ऐसे तो चलता ही है । अनेक प्रकार के लगाव बेहद के वैरागी बनने नहीं देते हैं । चाहना है बनें, संकल्प भी करते हैं - बनना ही है । लेकिन चाहना और करना दोनों का बैलेन्स नहीं है । चाहना ज्यादा है, करना कम है । करना ही है - यह वैराग्य वृत्ति अभी इमर्ज नहीं है । बीच-बीच में इमर्ज होती है, फिर मर्ज हो जाती है । समय तो करेगा ही लेकिन पास विद ऑनर नहीं बन सकते । पास होंगे लेकिन पास विद ऑनर नहीं । समय की रफ्तार तेज है, पुरुषार्थ की रफ्तार कम है । मोटा-मोटा पुरुषार्थ तो है लेकिन सूक्ष्म लगाव में बंध जाते हैं । बापदादा जब बच्चों के गीत सुनते हैं - उड़ आयें, उड़ आयें.... तो सोचते हैं उड़ा तो लें लेकिन लगाव उड़ने देंगे या न इधर के रहेंगे न उधर के रहेंगे? अभी समय प्रमाण लगाव-मुक्त बेहद के वैरागी बनो । मन से वैराग्य हो । प्रोग्राम प्रमाण वैराग्य जो आता है वह अल्पकाल का होता है । चेक करो - अपने सूक्ष्म लगाव को । मोटी-मोटी बातें अभी खत्म हुई हैं, कुछ बच्चे मोटे-मोटे लगाव से मुक्त हैं भी लेकिन सूक्ष्म लगाव बहुत सूक्ष्म हैं, जो स्वयं को भी चेक नहीं होते हैं । (मालूम नहीं पड़ते हैं) । चेक करो, अच्छी तरह से चेक करो । सम्पूर्णता के दर्पण से लगाव को चेक करो । यही ब्रह्मा बाप के स्मृति दिवस की गिफ्ट ब्रह्मा बाप को दो । प्यार है ना, तो प्यार में क्या किया जाता है? गिफ्ट देते हैं ना? तो यह गिफ्ट दो । छोड़ो, सब किनारे छोड़ो । मुक्त हो जाओ । बापदादा खुश भी होते हैं कि बच्चों में उमंग-उत्साह उठता है, बहुत अच्छे-अच्छे स्व-उन्नति के संकल्प भी करते हैं । अभी उन संकल्पो को करके दिखाओ । अच्छा ।  चारों ओर देश विदेश के स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों को, सदा बाप के स्नेह के सागर में समाये हुए रहने वाले अति समीप आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप की विशेषताओं को स्वयं में धारण करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा मेहनत मुक्त हो, मौज में रहने वाली परमात्म प्यार में उड़ने वाली आत्माओं को, बाप समान बनने के संकल्प को साकार में लाने वाले ऐसे दिलाराम बाप के दिल में समाये हुए बच्चों को, विशेष आज के दिन ब्रह्मा बाप की पदम-पदमगुणा यादप्यार स्वीकार हो । बापदादा तो सदा बच्चों के दिल में रहते हैं, वतन में रहते भी बच्चों के दिल में रहते है, तो ऐसे दिल में समाने वाले बच्चों को बापदादा का स्नेह के मोतियों की थालियाँ भर-भर कर यादप्यार और नमस्ते ।  
वरदान: त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा तीनों कालों का स्पष्ट अनुभव करने वाले मा. नालेजफुल भव !      जो त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहते हैं वह एक सेकण्ड में तीनों कालों को स्पष्ट देख सकते हैं । कल क्या थे, आज क्या हैं और कल क्या होंगे - उनके आगे सब स्पष्ट हो जाता है । जैसे कोई भी देश में जब टॉप पॉइंट पर खड़े होकर सारे शहर को टेखते हैं तो मजा आता है, ऐसे ही संगमयुग टॉप पॉइंट है, इस पर खड़े होकर तीनों कालों को देखो और फ़लक से कहो कि हम ही देवता थे और फिर से हम ही बनेंगे, इसी को कहते हैं मास्टर नालेजफुल ।   


स्लोगन:  हर समय अन्तिम घड़ी है, इस स्मृति से एवररेडी बनो ।


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12-10-2014, Sunday


12/10/14 Madhuban BapDada Om Shanti 01/98
In order to serve others by giving them a current of light and might (sakaash),
become free from attachment and have unlimited disinterest.
Blessing: May you be master knowledge-full and clearly experience
the three aspects of time with your trikaldarshi stage.
Those who remain stable in the trikaldarshi stage are able to see clearly the
three aspects of time in a second. “What was I yesterday? What am I now? And,
what will I become tomorrow? Everything is very clear in front of them. When
someone stands at the top point of a city and looks down on the city, he has great
pleasure. Similarly, the confluence age is the top point. Stand here and look at the
three aspects of time and say with that intoxication: We were deities and we are
the ones who will become those again. This is known as being master knowledge-full.
Slogan: Every moment is the final moment. Remain ever ready with this awareness.
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