Saturday, November 28, 2015

28-11-2015's Murli

२८-११-२०१५, शनिवार

28-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों को शान्ति और सुख का वर्सा देने, तुम्हारा स्वधर्म ही शान्त है, इसलिए तुम शान्ति के लिए भटकते नहीं हो”।   
प्रश्न: अभी तुम बच्चे 21 जन्मों के लिए अखुट खजानों में वज़न करने योग्य बनते हो - क्यों?
 उत्तर: क्योंकि बाप जब नई सृष्टि रचते हैं, तब तुम बच्चे उनके मददगार बनते हो। अपना सब कुछ उनके कार्य में सफल करते हो इसलिए बाप उसके रिटर्न में 21 जन्मों के लिए तुम्हें अखुट खजानों में ऐसा वज़न करते हैं जो कभी धन भी नहीं खुटता, दु:ख भी नहीं आता, अकाले मृत्यु भी नहीं होती।

ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को ओम् का अर्थ तो सुनाया है। कोई-कोई सिर्फ ओम् कहते हैं, परन्तु कहना चाहिए ओम् शान्ति। सिर्फ ओम् का अर्थ निकलता है ओम् भगवान। ओम् शान्ति का अर्थ है मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ। हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर है। पहले है आत्मा, पीछे है शरीर। आत्मा शान्त स्वरूप है, उनका निवास स्थान है शान्तिधाम। बाकी कोई जंगल में जाने से सच्ची शान्ति नहीं मिलती है। सच्ची शान्ति मिलनी ही तब है जब घर जाते हैं। दूसरा शान्ति चाहते हैं जहाँ अशान्ति है। यह अशान्ति का दु:खधाम विनाश हो जायेगा फिर शान्ति हो जायेगी। तुम बच्चों को शान्ति का वर्सा मिल जायेगा। वहाँ न घर में, न बाहर राजधानी में अशान्ति होती। उसको कहा जाता है शान्ति का राज्य, यहाँ है अशान्ति का राज्य क्योंकि रावण राज्य है। वह है ईश्वर का स्थापन किया हुआ राज्य। फिर द्वापर के बाद आसुरी राज्य होता है, असुरों को कभी शान्ति होती नहीं। घर में, दुकान में जहाँ तहाँ अशान्ति ही अशान्ति होगी। 5 विकार रूपी रावण अशान्ति फैलाते हैं। रावण क्या चीज़ है, यह कोई भी विद्वान पण्डित आदि नहीं जानते। समझते नहीं हैं हम वर्ष-वर्ष रावण को क्यों मारते हैं। सतयुग-त्रेता में यह रावण होता ही नहीं। वह है ही दैवी राज्य। ईश्वर बाबा दैवी राज्य की स्थापना करते हैं तुम्हारे द्वारा। अकेले तो नहीं करते हैं। तुम मीठे-मीठे बच्चे ईश्वर के मददगार हो। आगे थे रावण के मददगार। अब ईश्वर आकर सर्व की सद्गति कर रहे हैं। पवित्रता, सुख, शान्ति की स्थापना करते हैं। तुम बच्चों को ज्ञान का अब तीसरा नेत्र मिला है। सतयुग-त्रेता में दु:ख की बात नहीं। कोई गाली आदि नहीं देते, गंद नहीं खाते। यहाँ तो देखो गंद कितना खाते हैं। दिखाते हैं कृष्ण को गऊयें बहुत प्यारी लगती थी। ऐसे नहीं कि कृष्ण कोई ग्वाला था, गऊ की पालना करते थे। नहीं, वहाँ की गऊ और यहाँ की गऊ में बहुत-बहुत फ़र्क है। वहाँ की गायें सतोप्रधान बहुत सुन्दर होती हैं। जैसे सुन्दर देवतायें, वैसे गायें। देखने से ही दिल खुश हो जाए। वह है ही स्वर्ग। यह है नर्क। सभी स्वर्ग को याद करते हैं। स्वर्ग और नर्क में रात-दिन का फ़र्क है। रात होती है अन्धियारी, दिन में है सोझरा। ब्रह्मा का दिन गोया ब्रह्मावंशियों का भी दिन हो जाता। पहले तुम भी घोर अन्धियारी रात में थे। इस समय भक्ति का कितना ज़ोर है, महात्मा आदि को सोने में वज़न करते रहते क्योंकि शास्त्रों के बहुत विद्वान हैं। उन्हों का प्रभाव इतना क्यों है? यह भी बाबा ने समझाया है। झाड़ में नये-नये पत्ते निकलते हैं तो सतोप्रधान हैं। ऊपर से नई सोल आयेगी तो जरूर उनका प्रभाव होगा ना अल्पकाल के लिए। सोने अथवा हीरों में वज़न करते हैं, परन्तु यह तो सब खलास हो जाने हैं। मनुष्यों के पास कितने लाखों के मकान हैं। समझते हैं हम तो बहुत साहूकार हैं। तुम बच्चे जानते हो यह साहूकारी बाकी थोड़े समय के लिए है। यह सब मिट्टी में मिल जायेंगे। किनकी दबी रही धूल में........ बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं, उसमें जो लगाते हैं उन्हों को 21 जन्मों के लिए हीरों-जवाहरों के महल मिलेंगे। यहाँ तो एक जन्म के लिए मिलता है। वहाँ तुम्हारा 21 जन्म चलेगा। इन आंखों से जो कुछ देखते हो शरीर सहित सब भस्म हो जाना है। तुम बच्चों को दिव्य दृष्टि द्वारा साक्षात्कार भी होता है। विनाश होगा फिर इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा। तुम जानते हो हम अपना राज्य-भाग्य फिर से स्थापन कर रहे हैं। 21 पीढ़ी राज्य किया फिर रावण का राज्य चला। अब फिर बाप आया है। भक्ति मार्ग में सब बाप को ही याद करते हैं। गायन भी है दु:ख में सिमरण सब करें........। बाप सुख का वर्सा देते हैं, फिर याद करने की दरकार नहीं रहती। तुम मात-पिता........ अब यह तो माँ-बाप होंगे अपने बच्चों के। यह है पारलौकिक मात-पिता की बात। अभी तुम यह लक्ष्मी- नारायण बनने के लिए पढ़ते हो। स्कूल में बच्चे अच्छा पास होते हैं तो फिर टीचर को इनाम देते हैं। अब तुम उनको क्या इनाम देंगे! तुम तो उनको अपना बच्चा बना लेते हो, जादूगरी से। दिखलाते हैं - कृष्ण के मुख में माँ ने देखा माखन का गोला। अब कृष्ण ने तो जन्म लिया सतयुग में। वह तो माखन आदि नहीं खायेंगे। वह तो है विश्व का मालिक। तो यह किस समय की बात है? यह है अभी संगम की बात। तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ बच्चा जाए बनेंगे। विश्व का मालिक बनेंगे। दोनों क्रिश्चियन आपस में लड़ते हैं और माखन मिलता है तुम बच्चों को। राजाई मिलती है ना। जैसे वो लोग भारत को लड़ाकर मक्खन खुद खा गये। क्रिश्चियन की राजधानी पौन हिस्से में थी। पीछे आहिस्ते-आहिस्ते छूटती गई है। सारे विश्व पर सिवाए तुम्हारे कोई राज्य कर न सके। तुम अभी ईश्वरीय सन्तान बने हो। अभी तुम ब्रह्माण्ड के मालिक और विश्व के मालिक बनते हो। विश्व में ब्रह्माण्ड नहीं आया। सूक्ष्मवतन में भी राजाई नहीं है। सतयुग-त्रेता...... यह चक्र यहाँ स्थूल वतन में होता है। ध्यान में आत्मा कहाँ जाती नहीं। आत्मा निकल जाए तो शरीर खत्म हो जाए। यह सब हैं साक्षात्कार, रिद्धि-सिद्धि द्वारा ऐसे भी साक्षात्कार होते हैं, जो यहाँ बैठे विलायत की पार्लियामेन्ट आदि देख सकते हैं। बाबा के हाथ में फिर है दिव्य दृष्टि की चाबी। तुम यहाँ बैठे लण्डन देख सकते हो। औजार आदि कुछ नहीं जो खरीद करना पड़े। ड्रामा अनुसार उस समय पर वह साक्षात्कार होता है, जो ड्रामा में पहले से ही नूँध है। जैसे दिखाते हैं भगवान् ने अर्जुन को साक्षात्कार कराया। ड्रामा अनुसार उनको साक्षात्कार होना था। यह भी नूँध है। कोई की बड़ाई नहीं है। यह सब ड्रामा अनुसार होता है। कृष्ण विश्व का प्रिन्स बनता है, गोया मक्खन मिलता है। यह भी कोई जानते नहीं कि विश्व किसको, ब्रह्माण्ड किसको कहा जाता है। ब्रह्माण्ड में तुम आत्मायें निवास करती हो। सूक्ष्मवतन में आना-जाना साक्षात्कार आदि इस समय होता है फिर 5 हज़ार वर्ष सूक्ष्मवतन का नाम नहीं होता। कहा जाता है ब्रह्मा देवता नम: फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम: तो सबसे ऊंच हो गया ना। उनको कहा जाता है भगवान। वह देवतायें हैं मनुष्य, परन्तु दैवीगुण वाले हैं। बाकी 4-8 भुजा वाले मनुष्य होते नहीं। वहाँ भी 2 भुजा वाले ही मनुष्य होते हैं, परन्तु सम्पूर्ण पवित्र, अपवित्रता की बात नहीं। अकाले मृत्यु कभी होती नहीं। तो तुम बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए। हम आत्मा इस शरीर द्वारा बाबा को तो देखें। देखने में तो शरीर आता है, परमात्मा अथवा आत्मा को तो देख नहीं सकते। आत्मा और परमात्मा को जानना होता है। देखने लिए फिर दिव्य दृष्टि मिलती है। और सब चीज़ें दिव्य दृष्टि से बड़ी देखने में आयेगी। राजधानी बड़ी देखने में आयेगी। आत्मा तो है ही बिन्दी। बिन्दी को देखने से तुम कुछ भी नहीं समझेंगे। आत्मा तो बहुत महीन है। बहुत डॉक्टर्स आदि ने कोशिश की है आत्मा को पकड़ने की, परन्तु किसको पता नहीं पड़ता। वो लोग तो सोने-हीरों में वज़न करते हैं। तुम जन्म-जन्मान्तर पदमपति बनते हो। तुम्हारा बाहर का शो ज़रा भी नहीं। साधारण रीति इस रथ में बैठ पढ़ाते हैं। उनका नाम है भागीरथ। यह है पतित पुराना रथ, जिसमें बाप आकर ऊंच ते ऊंच सर्विस करते हैं। बाप कहते हैं मुझे तो अपना शरीर है नहीं। मैं जो ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर.... हूँ, तो तुमको वर्सा कैसे दूँ! ऊपर से तो नहीं दूँगा। क्या प्रेरणा से पढ़ाऊंगा? जरूर आना पड़ेगा ना। भक्ति मार्ग में मुझे पूजते हैं, सबको प्यारा लगता हूँ। गांधी, नेहरू का चित्र प्यारा लगता है, उनके शरीर को याद करते हैं। आत्मा जो अविनाशी है उसने तो जाकर दूसरा जन्म लिया। बाकी विनाशी चित्र को याद करते हैं। वह भूत पूजा हुई ना। समाधि बनाकर उन पर फूल आदि बैठ चढ़ाते हैं। यह है यादगार। शिव के कितने मन्दिर हैं, सबसे बड़ा यादगार शिव का है ना। सोमनाथ मन्दिर का गायन है। मुहम्मद गजनवी ने आकर लूटा था। तुम्हारे पास इतना धन रहता था। बाबा तुम बच्चों को रत्नों में वज़न करते हैं। खुद को वज़न नहीं कराता हूँ। मैं इतना धनवान बनता नहीं हूँ, तुमको बनाता हूँ। उनको तो आज वजन किया, कल मर जायेंगे। धन कोई काम नहीं आयेगा। तुमको तो बाप अखुट खजाने में ऐसा वजन करते हैं जो 21 जन्म साथ रहेगा। अगर श्रीमत पर चलेंगे तो वहाँ दु:ख का नाम नहीं, कभी अकाले मृत्यु नहीं होती। मौत से डरेंगे नहीं। यहाँ कितना डरते हैं, रोते हैं। वहाँ कितनी खुशी होती है - जाकर प्रिंस बनेंगे। जादूगर, सौदागर, रत्नागर, यह शिव परमात्मा को कहा जाता है। तुमको भी साक्षात्कार कराते हैं। ऐसे प्रिन्स बनेंगे। आजकल बाबा ने साक्षात्कार का पार्ट बन्द कर दिया है। नुकसान हो जाता है। अभी बाप ज्ञान से तुम्हारी सद्गति करते हैं। तुम पहले जायेंगे सुखधाम। अभी तो है दु:खधाम। तुम जानते हो आत्मा ही ज्ञान धारण करती है, इसलिए बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं। शरीर में हों तो शरीर के साथ संस्कार भस्म हो जाएं। तुम कहते हो शिवबाबा, हम आत्मायें पढ़ती हैं इस शरीर द्वारा। नई बात है ना। हम आत्माओं को शिवबाबा पढ़ाते हैं। यह तो पक्का-पक्का याद करो। हम सब आत्माओं का वह बाप भी है, टीचर भी है। बाप खुद कहते हैं मुझे अपना शरीर नहीं है। मैं भी हूँ आत्मा, परन्तु मुझे परमात्मा कहा जाता है। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाकी शरीर के नाम बदलते हैं। आत





28-11-2015, Saturday

Sweet children, the Father has come to give you children your inheritance of peace and happiness. Your original religion is peace. Therefore, you no longer wander around searching for peace.   
Question: How do you children become worthy of being weighed against unlimited treasures for 21 births ?
Answer: When the Father comes to make the world new, you children become His helpers. You use everything you have in a worthwhile way for His task. Therefore, in return, the Father weighs you against unlimited treasures for 21 births so that your wealth never diminishes; you never experience sorrow or untimely death.
Song: The heart gives thanks to the One who has given me support.   
Essence for Dharna: 
1.Whatever you see with your eyes, including your body, is all to be burnt. Therefore, use everything you have in a worthwhile way.
2.Study in order to claim your full inheritance from the Father. Constantly keep your luck in your awareness and become a master of Brahmand and a master of the world.
Blessing: May you be an embodiment of success who makes everyone co-operative by exchanging love with one another.   
You have now passed the stage of giving and receiving knowledge. Now, exchange love. Exchange love with anyone who comes in front of you or into relationship with you. This is known as being loving to all and lovely. You donate knowledge to those who are ignorant, but become a great donor of love within the Brahmin family. Let there not be anything except love even in your thoughts. When there is love for everyone, the response of that love is co- operation and the result of co-operation is success.
Slogan: To put a full stop to waste thoughts in a second is intense effort. 






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