Tuesday, October 22, 2013

21-10-2013's Murli

२१-१०-२०१३, सोमवार

मुरली सार: मीठे बच्चे – धीरज रखो अब तुम्हारे दु:ख के दिन पूरे हुए, सुख के दिन आ रहे हैं, निश्चय बुद्धि बच्चों की अवस्था धैर्यवत रहती है |
प्रश्न: किसी भी हालत में मुरझाइस न आये इसकी सहज विधि क्या है ?
उत्तर: ब्रह्मा बाप का सैम्पुल सदा सामने रखो। इतने ढेर बच्चों का बाप, कोई सपूत बच्चे हैं तो कोई कपूत, कोई सर्विस करते, कोई डिससर्विस, फिर भी बाबा कभी मुरझाते नहीं, घबराते नहीं फिर तुम बच्चे क्यों मुरझा जाते हो? तुम्हें तो किसी भी हालत में मुरझाना नहीं है।
गीत: धीरज धर मनुआ……..
धारणा के लिए मुख्य सार:१.योगबल से पतित दुनिया को पावन बनाने में बाप का मददगार बनना है। याद की यात्रा में रेस्ट नहीं लेनी है। ऐसी याद हो जो सामने वाला अपना शरीर भी भूल जाए।
२.श्रीमत में कभी भी शंका उठाकर अपनी मनमत नहीं चलानी है। हर बात में राय लेते उसमें अपना कल्याण समझकर चलना है।
वरदान: दिल में एक दिलाराम को बसाकर सहजयोगी बनने वाले सर्व आकर्षण मूर्त भव ।दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना – इसी को ही सहजयोग कहा जाता है। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प शक्ति सब बाप को दे दी, मन-वाणी और कर्म से बाप के हो गये तो और कोई भी संकल्प वा किसी भी प्रकार की आकर्षण आने की मार्जिन ही नहीं। स्वप्न भी इसी आधार पर आते हैं। जब सब कुछ तेरा कहा तो दूसरी आकर्षण आ ही नहीं सकती। सहज ही सर्व आकर्षण मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन: बाप से और ईश्वरीय परिवार से जिगरी प्यार हो तो सफलता मिलती रहेगी।
21-10-2013, Monday

No comments:

Post a Comment